एक बेहतर दुनिया के लिए

सूचनाएं अब मुक्त हैं। वे उड़ रही हैं इंटरनेट के पंखों पर। कई बार वे असंपादित भी हैं, पाठकों को आजादी है कि वे सूचनाएं लेकर उसका संपादित पाठ स्वयं पढ़ें। सूचना की यह ताकत अब महसूस होने लगी है। यह बात हमने आज स्वीकारी है, पर कनाडा के मीडिया विशेषज्ञ मार्शल मैकुलहान को इसका अहसास साठ के दशक में ही हो गया था। तभी शायद उन्होंने कहा था कि ‘मीडियम इज द मैसेज’ यानी ‘माध्यम ही संदेश है।’ मार्शल का यह कथन सूचना तंत्र की महत्ता का बयान करता है। आज का दौर इस तंत्र के निरंतर बलशाली होते जाने का समय है। संचार क्रांति ने इसे संभव बनाया है।

नई सदी की चुनौतियां इस परिप्रेक्ष्य में बेहद विलक्षण हैं। इस सदी में यह सूचना तंत्र या सूचना प्रौद्योगिकी ही हर युद्ध की नियामक है, जाहिर है नई सदी में लड़ाई हथियारों से नहीं सूचना की ताकत से होगी। मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था से ग्रस्त पश्चिमी देशों द्वारा बाजार की तलाश तथा तीसरी दुनिया के देशों में खड़ा हो रहा क्रयशक्ति से लबरेज उपभोक्ता वर्ग वह कारण हैं जो इस दृश्य को बहुत साफ-साफ समझने में मदद करते हैं । पश्चिमी देशों की यह व्यावसायिक मजबूरी भी संचार क्रांति का एक उत्प्रेरक तत्व बनी है। हम देखें तो अमरीका ने लैटिन देशों को आर्थिक, सांस्कृतिक रूप से कब्जा कर उन्हें अपने ऊपर निर्भर बना लिया। अब पूरी दुनिया पर इसी प्रयोग को दोहराने का प्रयास जारी है। निर्भरता के इस तंत्र में अंतरराष्ट्रीय संवाद एजेंसियां, विज्ञापन एजेसियां, जनमत संस्थाएं, व्यावसायिक संस्थाएं, मुद्रित एवं दृश्य-श्रवण सामग्री, अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार कंपनियां, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियां सहायक बनी रही हैं। लेकिन ध्यान दें कि सूचनाएं अब पश्चिम के ताकतवर देशों की बंधक नहीं रह सकती। उन्होंने अपना निजी गणतंत्र रच लिया है। एक नई दुनिया बन रही है, जिसने सूचना का लोकतंत्रीकरण किया है। हमें भी इस ताकत का अहसास है। ऐसे में यह जरूरी है संवाद, सूचना और संचार का व्यवस्थित और वैज्ञानिक अध्ययन हो तथा इसे शिक्षा के एक गंभीर विषय के रूप में विकसित किया जाए। क्योंकि संचार की विधा में समाजशास्त्र, मनोविज्ञान,तकनीक, सूचना-प्रौद्योगिकी, साहित्य, कला और भाषा जैसे अनेक विषय समाहित होते हैं। ऐसे विविधता भरे और फैले हुए ज्ञान को व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करना भी सरल नहीं है।

इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए आज के तीन दशक पूर्व मध्यप्रदेश सरकार ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। इसके प्रमुख उद्देश्यों में मीडिया और सूचना प्रौद्योगिकी की शिक्षा तथा शोध को प्रोत्साहित करना ही था। धीरे-धीरे अपने पाठ्यक्रमों का परिष्कार करते हुए हम आज संचार और सूचना प्रौद्योगिकी की शिक्षा के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित हो चुके हैं। इन तीन दशकों की यात्रा में हमारे महानिदेशकों, कुलपतियों और योग्य प्राध्यापकों ने संस्था को हमेशा नवाचारों और अनुभवसिद्ध प्रयोगों के लिए मुक्त रखा। यही कारण है कि आज देश-विदेश के मीडिया-संचार संगठनों, स्वयंसेवी संगठनों, सूचना-प्रौद्योगिकी, मनोरंजन संचार, मीडिया शिक्षा संगठनों में हमारे विद्यार्थी नेतृत्वकारी भूमिका में हैं।

हिंदी के यशस्वी कवि, पत्रकार, संपादक और स्वतंत्रता सेनानी पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के नाम पर स्थापित यह विश्वविद्यालय उनके द्वारा स्थापित मूल्यों का ही संवाहक है। जहां देशभक्ति का भाव सर्वोपरि है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुयायी रहे दादा माखनलाल चतुर्वेदी की पुण्यस्मृति सही मायने में हमारा संबल है और प्रेरणा भी। उनके नाम से जुड़ना आजादी के आंदोलन के मूल्यों से जुड़ना भी है, जिसमें भारतीयता, भारतबोध, भारतीय भाषाओं के विकास और संवर्धन की भावना सर्वोपरि है। समाज के सभी वर्गों के साथ जुड़कर उनके शैक्षणिक और सामाजिक न्याय के लिए काम करना ही हमारा संकल्प है। अपनी उदार, वृहद और समावेशी सोच के साथ विश्वविद्यालय ने अनेक राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों के आयोजन के माध्यम से बौद्धिक जगत में अपना सार्थक हस्तक्षेप किया। अपने समय के सभी प्रमुख बौद्धिकों के साथ संवाद और उनकी उपस्थिति से विश्वविद्यालय हमेशा संबल प्राप्त करता रहा। जिनमें सर्वश्री शंकरदयाल शर्मा, अटलबिहारी वाजपेयी, डा. एपीजे अब्दुल कलाम, शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती,प्रो. यशपाल, प्रभाष जोशी, राजेंद्र माथुर, भैरोसिंह शेखावत, अजीत भट्टाचार्जी, भैरप्पा, बालशौरि रेड्डी, नामवर सिंह, जयंत विष्णु नारलीकर जैसी अनेक महत्त्वपूर्ण विभूतियां शामिल हैं।

एक सुंदर दुनिया के लिए बेहतर मनुष्य का निर्माण कर उनमें संवेदना, मानवीयता के गुणों का विकास करना यही हमारे विश्वविद्यालय का ध्येय है। अपने इन्हीं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हमारा विश्वविद्यालय विविध सांस्कृतिक, साहित्यिक, बौद्धिक, खेलकूद की गतिविधियों के माध्यम से अपने विद्यार्थियों में सामाजिक गुणों का बीजारोपण करता है। ऐसा करते हुए हम उन्हें सिर्फ नौकरी के लिए तैयार नहीं करते बल्कि जीवन युद्ध के लिए एक योद्धा की तरह बनाते हैं। जिसमें वह न सिर्फ अपने बल्कि अपने आसपास और परिवेश के लिए सहयोगी सिद्ध हो। वह सिर्फ अपना विचार न करते हुए समावेशी विचार करे और एक सुंदर दुनिया के सपने को सच करने में सहयोगी बने। उसमें मनुष्यता और मूल्यबोध भरना किसी भी शिक्षा परिसर की जिम्मेदारी है और हम उसे ही निभा रहे हैं।

इस परिसर में होते हुए ही आपको इसके महत्व और गहराई का अहसास होगा। आइए हमारे साथ कुछ कदम चलिए और इसे महसूस भी कीजिए।

सादर

(प्रो.संजय द्विवेदी)

कुलपति