सफल साहित्यकार की कुंजियां हैं प्रतिभा, अध्ययन और अभ्यास
ऑनलाइन व्याख्यानमाला ‘स्त्री शक्ति संवाद’ के अंतर्गत चर्चित उपन्यासकार-कथाकार सुश्री इंदिरा दांगी का ‘सृजनात्मक लेखन’ पर व्याख्यान आयोजित, 21 जून को शाम 4:00 बजे ‘जेल और मीडिया’ विषय विचार रखेंगी मीडिया प्राध्यापक डॉ. वर्तिका नंदा
भोपाल, 20 जून 2020: माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल की व्याख्यानमाला ‘स्त्री शक्ति संवाद’ के अंतर्गत चर्चित उपन्यासकार-कथाकार सुश्री इंदिरा दांगी ने कहा कि सफल साहित्यकार बनने के लिए तीन आवश्यक तत्व होना जरूरी है- प्रतिभा, अध्ययन और अभ्यास। जिन लोगों में इन तीनों की पर्याप्तता है, वे निश्चित रूप से अच्छे और सफल लेखक बन सकते हैं। सफल साहित्यकार बनने के लिए मौलिकता और नवीनता एक अनिवार्य आवश्यकता है। बिना मौलिकता के कोई भी साहित्यकार लंबे समय तक नहीं चल सकता क्योंकि समाज या पाठकों को भी नित नई-नई रचनाएं चाहिए। इसलिए हर साहित्यकार को अपने पाठकों के लिए कुछ ना कुछ नया देने की चुनौती हमेशा रहती है।
‘सृजनात्मक लेखन’ विषय पर अपने व्याख्यान में सुश्री इंदिरा गांधी ने अपने अनुभवों के आधार पर विद्यार्थियों को साहित्यकार बनने के लिए न केवल टिप्स दिए बल्कि इस क्षेत्र की चुनौतियों से भी अवगत कराया। साहित्यकार के लिए भाषायी क्षमता को जरूरी बताते हुए सुश्री इंदिरा ने कहा कि भाषा पर मजबूत पकड़ बनाने के लिए बोलियों और लोकोक्तियों की गहरी पहचान जरूरी है। लेखक को परकाया प्रवेश की कला भी आनी चाहिए है। परकाया प्रवेश का तात्पर्य है कि आप जिस विषय या जिस व्यक्ति पर लेखन कर रहे हैं, उसमें पूर्ण रूप से समा जाना, साहित्य की भाषा में इसे ही परकाया प्रवेश कहते हैं। उन्होंने कहा कि आप व्यक्ति के रूप में भले सीमित हैं लेकिन सामाजिक रूप से आपका दायरा बड़ा और व्यापक होता है।
सुश्री इंदिरा ने कहा कि हर कोई भी व्यक्ति या साहित्यकार कभी भी पूर्ण या परिपक्व नहीं होते हैं, वह जीवन भर सीखता हैं और अपनी क्षमता में निखार लाता है। इसलिए लिखने की शुरुआत में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। सुश्री दांगी ने कहा कि अमूमन हर व्यक्ति के अंदर एक सोया हुआ साहित्यकार होता है जिसे जगाने की मेहनत करने की आवश्यकता होती है। जो इसमें सफल हो जाता है वह लेखक साहित्यकार बन जाता है। इसलिए बिना संकोच के आपको पहले लिखना होगा और जब आप बार-बार लिखेंगे तो आपकी लेखनी मजबूत होती जाएगी।
अच्छे लेखन के लिए आपको अपने आप की सुनना चाहिए, आप वह काम करें जो आप अच्छे से कर सकते हैं। जब आप लिखते हैं तो साधन से ज्यादा महत्व साध्य का होता है। लेकिन असली चीज मौलिकता है और प्रतिभा भी यही है। कैरियर बनाने के लिए अपनी मौलिकता को बनाए रखिए, साहित्य में जो नया है वही लोकप्रिय होकता है।
आज के दौर में व्यावसायिक लेखन पर उन्होंने कहा कि इसका कारोबार भले बढ़ रहा है लेकिन व्यावसायिक लेखन का रास्ता भी साहित्य से होकर ही गुजरता है, इसलिए साहित्य के बिना यह भी सार्थक और प्रभावी नहीं रह जाता है।
आज ‘जेल और मीडिया’ विषय पर डॉ. वर्तिका नंदा का व्याख्यान:
‘स्त्री शक्ति संवाद’ व्याख्यानमाला के अंतर्गत 21 जून को शाम 4 बजे ‘जेल और मीडिया’ विषय पर लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली के पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष एवं ‘तिनका-तिनका’ की संस्थापक डॉ. वर्तिका नंदा का व्याख्यान रहेगा। उन्होंने जेल बंदियों पर काफी काम किया है। उनका व्याख्यान विश्वविद्यालय के फेसबुक पेज पर शाम 4:00 बजे किया जायेगा।
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