सवाल पूछना पत्रकार का धर्म – सिद्धार्थ वरदराजन
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सुधार की संभावना नहीं, डिजिटल से उम्मीद
दो दिवसीय वसंत साहित्य उत्सव का समापन
भोपाल, 30 जनवरी, 2020: वरिष्ठ पत्रकार और ‘द वायर’ के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा कि सवाल पूछना पत्रकार का धर्म है। आपको संविधान सवाल पूछने पर सुरक्षा की गारंटी देता है। ऐसे भी पत्रकार हैं जो सवाल पूछते हैं तो ताकतवर लोगों के पसीने छूट जाते हैं। श्री वरदराजन गुरुवार को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता में संचार विश्वविद्यालय में वसंत साहित्य उत्सव के समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे । समापन सत्र के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी और जनसंपर्क विभाग के प्रमुख सचिव संजय कुमार शुक्ला थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति दीपक तिवारी ने की।
पत्रकारिता के विद्यार्थियों से रूबरू होते हुए उन्होंने कहा कि एक पत्रकार को सवाल पूछने से पीछे नहीं हटना चाहिए । उसे सत्ता में जो भी पार्टी हो उससे सवाल करना चाहिए। वह चाहे वामपंथी दल हो या दक्षिणपंथी। आज पत्रकार सत्ता से सवाल पूछने से डरते हैं या नहीं पूछते हैं । उन्होंने कहा कि यदि आप पत्रकारिता के व्यवसाय में आए हैं तो आपका जिगर मजबूत होना चाहिए। डिजिटल दौर को लेकर उन्होंने कहा कि आज नया इनीशिएटिव शुरू करना आसान है। आप अपना ब्लॉग लिख सकते हैं, अपनी बात लोगों तक पहुंचा सकते हैं जबकि बीस साल पहले ऐसा नहीं था। उन्होंने मीडिया में साम्प्रदायिकता को लेकर चल रही चर्चाओं पर चिंता जताई और इसे एक खतरनाक ट्रेंड बताया। उन्होंने कहा कि आज कुछ पत्रकार समाज हित के मुद्दों को ना उठाकर हिंदू-मुस्लिम विवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।
एनआरसी और सीएए के मसले पर देश में चल रही बहस को लेकर उन्होंने कहा कि इस बहस में आप किसी भी पक्ष में हो, लेकिन एक खास बात यह है कि लोग संविधान को अहमियत दे रहे हैं। संविधान की उद्देशिका को पढ़ रहे हैं, सड़क पर उतरकर संविधान की भावना को समझ रहे हैं। श्री वरदराजन ने कहा कि फ्रीडम ऑफ प्रेस इंडेक्स में हिंदुस्तान की गिरती रैंक चिंता की बात है। अफसोस की बात यह है देश के पाठकों, दर्शकों के लिए जैसा मीडिया होना चाहिए वैसा नहीं है। टीवी चैनल्स पर खबरें कम शोर-शराबा ज्यादा है, जिसका आम लोगों की जिंदगी से कोई लेना-देना नहीं है। रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक मंदी जैसे मुद्दों पर बहस नहीं होती । इसीलिए लोग इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से दूर जा रहे हैं।
श्री वरदराजन ने कहा कि विकसित देशों में अखबारों की प्रसार संख्या कम हो रही है। अखबारों और टेलीविजन को मिलने वाला रेवेन्यू इंटरनेट की तरफ जा रहा है, इससे अखबार का पुराना बिजनेस मॉडल प्रभावित हो रहा है। जबकि भारत में स्थिति थोड़ी अलग है यहां मीडिया में रोजगार की संभावनाएं बढ़ रही है। क्योंकि देश में न तो अखबारों की संख्या घट रही है और न ही उनकी प्रसार संख्या। उधर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर कुल 200 चैनल ऐसे हैं जो 24×7 वाले हैं।
सत्य के कई रूप: संजय शुक्ला
वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी और जनसंपर्क विभाग के प्रमुख सचिव संजय कुमार शुक्ला ने कहा कि जिस तरह से बैटरी को रिचार्ज करने की आवश्यकता पड़ती है, वैसे ही सृजनात्मकता को भी रिचार्ज करना पड़ता है। बसंत साहित्य उत्सव जैसे आयोजनों से सृजनात्मकता को पोषण मिलता है। उन्होंने कहा कि सत्य के कई रूप और चेहरे होते हैं। हर विषय को समझने के लिए उसके सभी पक्षों को जानना समझना जरूरी होता है। आज मुख्यधारा के मीडिया में सभी पक्षों पर कम बात हो रही है। श्री शुक्ला ने कहा कि भौगोलिक स्थिति के कारण हमारे देश में वसंत ऋतु का अलग स्थान है, ऐसी वसंत ऋतु विश्व के अन्य किसी देश में नहीं होती है।
महात्मा गांधी तूफान से कश्ती निकाल कर लाए – दीपक तिवारी
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति दीपक तिवारी ने कहा कि आज न केवल महात्मा गांधी को याद करने की जरूरत है, बल्कि जिन मूल्यों, आदर्शों के लिए जाने जाते थे, उन्हें जीने और जानने की जरूरत है। महात्मा गांधी जैसे व्यक्ति ही तूफान से इस देश की कश्ती निकालकर लाए । वसंत साहित्य उत्सव पर उन्होंने कहा कि इस आयोजन में पुस्तकों पर हर तरह की जीवंत चर्चाएं हुई। श्री तिवारी ने कहा कि इन दो दिनों में राजनीति, प्रौद्योगिकी, संस्कृति, साहित्य एवं पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे महापुरुषों पर सकारात्मक चर्चा हुई। उन्होंने आश्वस्त किया कि आने वाले समय में भी पूर्व विद्यार्थियों को साथ लेकर इस तरह के आयोजन विश्वविद्यालय में होते रहेंगे। कार्यक्रम का सफल संचालन विश्वविद्यालय के सहायक कुलसचिव एवं लेखक विवेक सावरीकर ‘मृदुल’ ने किया। आभार प्रदर्शन प्रोफेसर डॉ. अनुराग सीठा ने किया।