बिना लाइट्स के कभी फिल्में नहीं बन सकती : शिव कदम
कैमरे में बहुत ताकत होती है : अनवर जमाल
एमसीयू में फिल्म एप्रीसिएशन कार्यशाला का हुआ समापन
कुलाधिसचिव डॉ. सिंह, जनंसचार विभाग के अध्यक्ष संजीव गुप्ता थे उपस्थित
भोपाल, शुक्रवार, 18 अक्टूबर, 2019: बिना लाइट के कभी फिल्में नहीं बन सकती, क्योंकि फिल्मों में लाइट्स का बड़ा महत्व होता है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्विद्यालय में चल रही पांच दिवसीय फिल्म एप्रीसिएशन वर्कशॉप के समापन पर ये बात मराठी एवं हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध लेखक एवं निर्देशक श्री शिव कदम ने कही। पहले सत्र में “कंटेपरी डेवलपमेंट:डिजिटल टेक्नोलॉजी,स्पेशल इफेक्ट्स, एनीमेंशन, सिनेमा” एवं दूसरे सत्र में “चैंजिंग ट्रेंड्स ऑफ फिल्म प्रोडक्शन” विषय पर उन्होंने प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया । श्री कदम ने जहां फिल्मों में इफेक्ट्स की बारीकियों को बहुत ही अच्छे ढंग से समझाया, तो वहीं उन्होंने आवाज के महत्व को भी बड़ी ही खूबी के साथ बताया।
आग, कप्पचीनो, जवानी जिंदाबाद विंग्स ऑफ फायर, जैसे कई मराठी फिल्मों को लिखने के साथ ही निर्देशित कर चुके कदम ने कहा कि फिल्मों में 50 प्रतिशत महत्व साउंड का होता है। उन्होंने कहा कि सिर्फ विजुअल का ही फिल्मों में महत्व नहीं है, बिना साउंड के फिल्मों में जान नहीं रहेगी। एक उदाहरण के जरिए उन्होंने कहा कि फिल्मों में हड्डी टूटने की जो आवाज आपको सुनाई देती है, उस आवाज के लिए लौकी का उपयोग का किया जाता है। एक लौकी को डीप फ्रीजर में सात दिन के लिए रखा जाता है और जब इसे तोड़ा जाता है तो हड्डी टूटने जैसी आवाज निकलती है, जिसका उपयोग फिल्मों में किया जाता है। उन्होंने कहा जितने अच्छे से आप साउंड सेट करेंगे, उतनी अच्छी आप मूवी बना पाएंगे। 11 बेंगलुरु इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में जूरी रहे कदम ने कहा कि मूवी में एक-एक शॉट के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है, इसलिए जब आप फिल्में देखने जाओ तो उसे अवेयरनेश के साथ देखो । फिल्म लाइन में लगभग 20 सालों से अधिक का अनुभव रखने वाले कदम ने डिजिटल तकनीक के उपयोग के बारे में भी प्रतिभागियों को बताया।
देश के मशहूर लेखक एवं डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता श्री अनवर जमाल ने फिल्म “एनालिसिस एक्सरसाइज एवं शॉर्ट फिल्म” विषय पर कहा कि कैमरे में बहुत ताकत होती है। उन्होंने कहा कि इसमें इतनी ताकत होती है कि व्यक्ति अन्य चीजों को भूल जाता है। जमाल ने भाषा पर बोलते हुए कहा कि भाषा ऐसी होनी चाहिए कि जिससे भाव स्पष्ट हो, यदि आपकी रचना में थोड़ी भी भावना का अंश है तो आपकी रचना बड़ी हो जाएगी। कहानियों पर उन्होंने कहा कि व्यक्ति को हर वक्त कहानी बुननी चाहिए । जमाल के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति फिल्मकार बनना चाहता है तो, उसे सचेत होना होगा, और यदि वह एक एक्टर बनना चाहता हैं तो उसे खुद को ढूंढना होगा । 2002 में अपनी फीचर फिल्म स्वराज द लिटिल रिपब्लिक से प्रसिद्धि पा चुके श्री जमाल ने कहा कि दुनियां की सबसे वास्तविक चीज निरपराधता है। उन्होंने कहा यदि जीवन में उद्देश्य है तो आप उत्कृष्ट होंगे। 1989 में फ्रेंच टेलीविजन पर सामाजिक राजनीतिक कहानियों की श्रृंखला में निर्देशक के रुप में काम कर चुके श्री जमाल ने हॉलीवुड मूवीज पर भी बात की, साथ ही अपनी दो फिल्में द सेकेंड आई और कम्पार्टमेंट भी दिखाई।
पांच दिवसीय कार्यशाला के समापन के अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव डॉ. श्रीकांत सिंह उपस्थित थे। समापन समारोह में कार्यशाला में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र वितरित किए गए । अंत में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष एवं कार्यशाला के संयोजक डॉ. संजीव गुप्ता ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का आभार माना।