सिनेमा देखने के साथ ही समझना भी जरुरी : अनिल चौबे
हर एक्ट का एक अर्थ होता है : अनवर जमाल
उदयन वाजपेयी ने सिनेमाई कलाओं की प्रकृति को समझाया
एमसीयू में चल रही फिल्म एप्रीसिएशन कार्यशाला का आज होगा समापन
भोपाल, गुरूवार, 17 अक्टूबर, 2019: सिनेमा मनोरंजन जरुर है, लेकिन ये पहले शिक्षित करता है, इसलिए सिनेमा देखने के साथ ही इसे समझना भी जरुरी है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में फिल्म एप्रीसिएशन कार्यशाला के चौथे दिन ये बात फिल्म समीक्षक डॉ. अनिल चौबे ने कही। “कंटेम्परी इंडियन सिनेमा” विषय पर चयनित निर्देशकों के फिल्मी कार्य पर श्री चौबे ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि सिनेमा में सब कलाएं हैं। एक फिल्म को हजारों लोग मिलकर बनाते हैं जो पर्दे के पीछे होते हैं,लेकिन पर्दे पर एक ही व्यक्ति दिखता हैं क्योंकि वह मुख्य पात्र होता है । चुनिंदा फिल्मों के कुछ खास शॉट को दिखाते हुए श्री चौबे ने विशेषतौर पर सिनेमेटोग्राफी की बाराकियों को समझाया। उन्होंने फिल्म “कागज के फूल” का उदाहरण देते हुए बताया कि इसमें जबर्दस्त सिनेमेटोग्राफी है। उन्होंने कहा कि असली हीरो वह है, जिसकी नजर से आप पर्दे पर अभिनेता को देखते हैं, और सिनेमेटोग्राफर वही काम करता है। सिनेमेटोग्राफर बड़ी गहरी समझ वाला होता है, क्योंकि वह जानता है कि निर्देशक क्या चाहता है।
सिनेमा के दृश्यों की गहरी समझ रखने वाले श्री चौबे ने सत्यजीत रे के बारे में कहा कि वे एक बड़े ग्रंथ के समान थे । रे की कई प्रसिद्ध फिल्मों की पटकथा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सत्यजीत रे भारतीय सिनेमा की वैश्विक धरोहर थे, उनमें फिल्मों की गहरी समझ थी। सिनेमा एवं नवाचार पर श्री चौबे ने कहा कि सिनेमा इनोवेशन के लिए भी जाना जाता है। सिनेमा में सबसे महत्वपूर्ण आब्जर्वेशन (अवलोकन) होता है । श्री चौबे ने कहा कि अच्छे कथानक एवं अच्छी कल्पनाशीलता के बगैर फिल्म अच्छी नहीं बन सकती । उन्होंने कहा कि सिनेमा जहां हमें चौंकाता है, वहीं एक नई दृष्टि भी देता है।
जाने माने फिल्म लेखक एवं डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता अनवर जमाल ने “इंटरप्रिटेशन ऑफ फिल्म बाय डिफरेंट डायरेक्टर्स” विषय पर कहा कि किसी भी एक्ट का, एक अर्थ होता है। बिना अर्थ के कोई एक्ट नहीं होता। जैसे क्लोजअप शॉट का अर्थ इमोशन से जुड़ा होता है। श्री जमाल ने जातक कथाओं का उदाहरण देते हुए कहा कि इसमें कहानी में से कहानी निकलती है, इससे बहुत कुछ हम सीख सकते हैं। साउंड (आवाज) पर विशेष रुप से बात करते हुए उन्होंने बताया कि फिल्म में इसका कितना ज्यादा महत्व है । उन्होंने साउंड के महत्व एवं अर्थ को बताते हुए कहा कि साउंड को क्रिएट किया जाता है । सर्वश्रेष्ठ खोजी फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पा चुके श्री जमाल ने कहा कि कैमरे ने हमें क्रियटिव बनाया है, लेकिन साथ ही अत्याचारी भी बनाया है, क्योंकि आजकल कोई भी दुर्घटना घटती है तो लोग उसकी मदद करने की बजाय वीडियो बनाते लगते हैं, इसलिए हमें कैमरे के महत्व को समझते हुए, उसके साथ काम करना चाहिए। दूरदर्शन के उर्दू चैनल के सलाहकार रहे श्री जमाल ने कहा कि सिनेमा में रचनात्मकता का बहुत महत्व है।
पांच दिवसीय कार्यशाला के चौथे दिन के अंतिम सत्र में साहित्य, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में चिर-परिचित नाम श्री उदयन वाजपेयी ने “द नेचर ऑफ सिनेमेटिक आर्ट” पर अपनी बात रखी। वाजपेयी ने सिनेमाई कलाओं की प्रकृति की बारीकियों को विशेष रुप से बताया एवं समझाया ।
जनसंचार विभाग के अध्यक्ष एवं कार्यशाला के संयोजक डॉ. संजीव गुप्ता ने जानकारी देते हुए बताया कि शुक्रवार को पांच दिवसीय कार्यशाला का समापन होगा । वर्कशॉप के अंतिम दिन औरंगाबाद के फिल्म मेकर एवं क्रियटिव डायरेक्टर श्री शिव कदम, एवं मध्यप्रदेश राज्य नाट्य अकादमी के डायरेक्टर श्री आलोक चटर्जी, लेखक एवं निर्माता श्री अनवर जमाल प्रतिभागियों का मार्गदर्शन करेंगे।