पाखण्ड से लड़ने के लिए भाषा सबसे बड़ा हथियार
संत कबीरदास की जयंती प्रसंग पर अतिथियों ने किया विश्वविद्यालय की ‘मनुज फीचर सर्विस’ का का शुभारंभ
भोपाल, 17 जून, 2019: माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में संत कबीरदास की जयंती प्रसंग पर आयोजित विशेष व्याख्यान में प्रख्यात कवि एवं लेखक श्री ध्रुव शुक्ल ने कहा कि कबीर के समय में जो पाखण्ड था और आज के समय में हमारे सामने जो पाखण्ड है, उसके विरुद्ध सबसे बड़ा हथियार भाषा है। आज दुनिया में धर्म, राजनीति, नस्लवाद, बाजार जैसे अनेक पाखण्ड मौजूद हैं। इसलिए आज पूँजी निवेश से अधिक शब्द निवेश की आवश्यकता है। कबीरदास के दो मूल भाव थे- शब्द की साधना हो और समाधि सहज और भली हो। उन्होंने शब्द की सत्ता पर अधिक जोर दिया। इस अवसर पर ‘मनुज फीचर सर्विस’ का भी शुभारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति श्री दीपक तिवारी ने की। कुलाधिसचिव डॉ. श्रीकांत सिंह भी मंच पर उपस्थित रहे।
मुख्य वक्ता श्री ध्रुव शुक्ल ने कहा कि शब्द, काल औ र योग, इन तीनों पर भारतीय मनीषा ने बहुत गहराई से चिंतन किया है। शब्द के बिना सृष्टि नहीं है। यदि हम शब्द को हटा दें तो सृष्टि नहीं रहेगी। शब्द को हमारे यहाँ ब्रह्म कहा गया है। जबकि आज हम उस समय में रह रहे हैं, जहाँ शब्द का सबसे अधिक दुरुपयोग हो रहा है। मनुष्य की प्रवृत्ति है कि वह अपने शब्द को ही सही सिद्ध करने का प्रयास करता है। उसी कारण आज धर्म और राजनीति में शब्द का बहुत अवमूल्यन किया जा रहा है।
श्री शुक्ल ने कहा कि संत कबीरदास ने अपनी कविता को कविता नहीं माना, बल्कि साखी और वाणी कहा है। साखी से अभिप्राय है, साक्षी होना। हमें शब्द का साक्षी होना चाहिए और उस शब्द में बसे संकल्प को निभाना चाहिए। कबीरदास जैसे साधक जानते थे कि तीन शब्द हैं, जिनका किसी भी शब्दकोश में सटीक अर्थ नहीं मिल सकता- सत्य, प्रेम और आनंद। यह तीनों शब्द अर्थहीन हैं। प्रत्येक व्यक्ति के लिए तीनों का अर्थ अलग-अलग हो सकता है। वह जानते थे कि शब्द कोई वस्तु नहीं है। शब्द हमारे मन, वचन और कर्म से ही पैदा होते हैं। इसलिए जैसा हमारा मन, वचन और कर्म होगा, वैसा ही शब्द हमारे माध्यम से अभिव्यक्त होगा।
कथनी-करनी का अंतर है पाखण्ड:
कुलपति श्री दीपक तिवारी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि कबीरदास जी ने अपने शब्दों से सदैव पाखण्ड पर चोट की। दरअसल, कथनी और करनी का जो अंतर है, वही पाखण्ड है। पाखण्ड के विरुद्ध कबीरदास जी से अधिक शायद ही किसी और ने बोला हो। उन्होंने बताया कि गुरु को बहुत अच्छे से कबीरदास जी ने अपने दोहों में परिभाषित किया है। सच्चा गुरु वह है, जो सहजता से ज्ञान दे। श्री तिवारी ने बताया कि दस-बारह वर्ष पहले बंद हुई ‘मनुज फीचर सर्विस’ को विश्वविद्यालय संत कबीरदास की जयंती प्रसंग पर फिर से प्रारंभ कर रहा है। जिस तरह कबीरदास के दोहे जनमानस को दिशा दिखाने का प्रयास करते हैं, उसी प्रकार मनुज फीचर सर्विस भी प्रमाणिक जानकारी और नवाचार के माध्यम से समाज को दिशा दिखाने का प्रयास करेगी। मनुज फीचर सर्विस के बारे में कुलपति ने बताया कि लेखकों, स्तम्भकारों, विद्वानों के विचारों को स्थान देने का प्रयास है, जिन्हें कई बार समाचार-पत्रों में स्थान नहीं मिल पाता है। यह पाठकों और विद्वानों के बीच सेतु बनाने का भी प्रयास है। उन्होंने कहा कि अज्ञान को ज्ञान मानने की समस्या समाज में बढ़ रही है। यह सर्विस इस समस्या पर कुठाराघात करेगी। समाज में बढ़ रहे पाखण्ड पर चोट करेगी। संविधान, विज्ञान, पर्यावरण, स्वतंत्रता आंदोलन, महापुरुषों के संबंध में अधिक से अधिक जानकारी पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास मनुज फीचर सर्विस के माध्यम से किया जाएगा। विश्वविद्यालय के शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी और विद्यार्थी भी इसमें लिख सकेंगे। कार्यक्रम का संचालन श्री विवेक सावरीकर ने किया।