पत्रकारिता विश्वविद्यालय 16 अगस्त को मनाएगा अपना स्थापना दिवस : प्रो. केजी सुरेश
सबसे बड़ा गुरु है संवाद : प्रो. संजीव शर्मा
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में गुरु पूर्णिमा उत्सव के प्रसंग पर विशेष व्याख्यान का आयोजन
भोपाल, 23 जुलाई, 2024: संवाद सबसे बड़ा गुरु है। कक्षा के बाहर शिष्य के साथ किया गया संवाद भी उसे शिक्षा देता है। शिक्षकों के आचरण से भी उनके विद्यार्थी सीखते हैं। इसलिए शिक्षकों को हर क्षण अपने आचरण पर ध्यान देना चाहिए। यह विचार महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के पूर्व कुलपति प्रो. संजीव शर्मा ने व्यक्त किए। गुरु पूर्णिमा उत्सव के प्रसंग पर आयोजित विशेष व्याख्यान की अध्यक्षता कुलगुरु प्रो. केजी सुरेश ने की। इस अवसर पर कुलगुरु प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि इस वर्ष से हम प्रतिवर्ष 16 अगस्त को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय का स्थापना दिवस मनाएंगे। विश्वविद्यालय एक लंबी यात्रा तय कर चुका है।
‘नई शिक्षा नीति में गुरु की भूमिका’ विषय पर मुख्य अतिथि प्रो. संजीव शर्मा ने कहा कि जिसे पहले एक्स्ट्रा करिकुलम कहा गया था, वह विद्यार्थी के व्यक्तित्व विकास का अभिन्न अंग है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने इस ‘एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर सार्थक पहल की है। हमारे समाज में ऐसे अनेक लोग हैं, जिन्हें विश्वविद्यालयों में होना चाहिए। वे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से हमें बहुत कुछ सिखाते हैं। इसलिए उन्हें भी हमें गुरु के रूप में ही देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में गुरु का ईश्वर के समान सम्मान है। गुरु का अर्थ है, जो हम हैं उससे अधिक। गुरु का अर्थ है, भारी, बड़ा और देने वाला। हमारी परंपरा में जिससे हम सीखते हैं वह गुरु है। जिसने एक अक्षर भी नया सिखा दिया, वह गुरु है। उन्होंने कहा कि आदिगुरु शंकराचार्य अपने शिष्य मंडन मिश्र से कहते हैं कि जो मैंने लिखा है, उसे अच्छे से देख लो और जो मुझसे छूट गया है, उसे खोज लो। यह है गुरु की महानता, जो स्वीकार करते हैं कि उनसे भी बहुत कुछ छूट गया होगा। स्मरण रखें कि शंकराचार्य ने 8 वर्ष की आयु में ही चारों वेदों का भाष्य कर दिया था।
उन्होंने कहा कि आधुनिक विश्वविद्यालय की व्यवस्था नहीं आयी थी, तब भी भारत में अनेक गुरुकुल संचालित थे, जिनके प्रमुख आचार्य को कुलपति कहा जाता था। हमारे शास्त्रों में कुलपति की व्याख्या की गई है। आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति कहती है कि विद्यार्थी को बहु-विषय और कौशल सीखने चाहिए। हमारे गुरुकुलों में यह व्यवस्था थी, जहां शिष्य सभी प्रकार की शिक्षा और कौशल सीखते थे। उन्होंने महाभारत से शंख और लिखित की कहानी सुनाई, जो गुरुकुल संचालित करते थे। इस कथा के माध्यम से उन्होंने व्यवस्था, दायित्व और अनुशासन का बोध कराया। उन्होंने कहा कि भारत की परंपरा में गुरु मार्ग दिखाने वाले हैं। वेदों के ज्ञान को समाज तक सरल पद्धति में पहुंचाने के लिए उपनिषदों की रचना की। उपनिषद का अर्थ ही है, गुरु के समीप बैठकर सीखना।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में गुरु का महत्वपूर्ण स्थान:
कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि हमारे विश्वविद्यालय ने मध्यप्रदेश में सबसे पहले राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अपनाया था। कुलपति प्रो. सुरेश ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार शिक्षा में गुरु की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। नए परिवेश में शिक्षकों को अधिकतम समय अपने विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में देना है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को बदलाव को स्वीकार करना होगा और नई तकनीक को सीखकर उसका उपयोग करना चाहिए। कुलपति प्रो. सुरेश ने कहा कि शिक्षकों को शोध की दिशा में भी अपना योगदान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि गुरु का दर्जा कहने से नहीं मिलता, यह अपने आचरण एवं ज्ञान से प्राप्त करना होता है। कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय की भारतीय ज्ञान परंपरा समिति के सदस्य एवं प्राध्यापक शिवकुमार विवेक ने किया और आभार ज्ञापन प्रो. संजय द्विवेदी ने किया।
दतिया परिसर में आयोजित होगा ऑनलाइन सेमिनार:
दतिया परिसर के प्रभारी डॉ. कपिल चंदौरिया ने जानकारी दी कि विश्वविद्यालय के दतिया परिसर में 23-24 अगस्त को ‘डिजिटल मीडिया: अ रोडमैप टू विकसित भारत 2047’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय ऑनलाइन सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। इस सेमिनार हेतु शोध पत्र भेजने की अंतिम दिनांक 21 अगस्त है।