एआई की अपनी सीमा है वह इंसानी दिमाग का मुकाबला नहीं कर सकता – प्रो.के.जी. सुरेश
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से मीडिया को फायदा भी है और नुकसान भी
पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में राष्ट्रीय संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने की सहभागिता
भोपाल/इंदौर, 09 फरवरी, 2024: माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. के. जी. सुरेश ने कहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की अपनी सीमा है। वह इंसान के दिमाग का मुकाबला नहीं कर सकता है। इस इंटेलिजेंस के कारण सुविधा भी मिलेगी तो चुनौतियां भी आएगी। संवेदनाएं केवल इंसानी दिमाग से ही प्रकट हो सकेगी। वे देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में नए दौर के मीडिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। इस संगोष्ठी का आयोजन अध्ययनशाला एवं शोध पत्रिका समागम द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इस कार्यक्रम में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. रेनू जैन एवं कुलसचिव अजय वर्मा भी उपस्थित थे। इस अवसर पर उल्लेखनीय योगदान के लिए डा. विधाशंकर विभूति , डा. सविता यादव, परेश उपाध्याय का सम्मान भी किया गया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अध्ययनशाला की विभागाध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे ने कहा कि आने वाले कल में पत्रकार के रुप में मैदान में आने वाले विद्यार्थियों को तकनीक के उजाले और काले पक्ष से रुबरु कराने के लिए इस तरह के आयोजन किए जाते हैं। इस आयोजन के माध्यम से एक तरफ जहां विद्यार्थियों का ज्ञान बढ़ता है तो वहीं दूसरी तरफ विद्यार्थी अपनी योग्यता को तकनीक के माध्यम से विस्तार दे पाते हैं।
प्रो.केजी सुरेश ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शब्द 1956 में इजाद हुआ था। आज यह हमारी जिंदगी का अंग बनता हुआ प्रतीत हो रहा है। हमें इसे स्वीकार करना चाहिए। इसके साथ ही जागरुक रहना चाहिए। जब हमारे देश में कंप्यूटर आया था, तो उस समय कहा गया था कि इस कंप्यूटर के कारण लोगों की नौकरी जाएगी। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो जाएंगे। आज इसी कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर तैयार करने में पूरे विश्व में भारत का नाम है। हम सभी के हाथ में मौजूद मोबाइल हमारी आकांक्षा का प्रतीक बन गया है। आज रिक्शा चलाने वाले से लेकर हर व्यक्ति मोबाइल का उपयोग कर रहा है। जब मोबाइल हाथ में लिया था तब हमने कहा था कि दुनिया हमारी मुट्ठी में है लेकिन अब लग रहा है कि हम मोबाइल की मुट्ठी में है। उन्होंने कहा कि हर तकनीक और व्यक्ति में अच्छाई और बुराई दोनों होती है। अच्छाई से व्यक्ति राम बन जाता है और बुराई से रावण। ऐसी ही स्थिति तकनीक में भी बनती है व एक तरफ जहां आग हरदा में भीषण हादसे का कारण बन गई तो वही आग घर में रोटी पकाने का काम करती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में तीन अच्छाइयां है। यह अच्छाइयां हैं -सुविधाजनक होना, हमारी पसंद को पकड़ना और हमारे काम करने की क्षमता को बढ़ाना। इसके साथ ही इसमें जो बुराई है वह यह है कि इसे आपकी पुरी जानकारी है। आज मोबाइल हम चला रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि मोबाइल हमे चला रहा है। आज विश्व के कई देशों में मोबाइल व्रत शुरु हो गया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस दौर में हमें अपनी आदत में बदलाव लाना होगा। कोई भी तकनीक ऐसी नहीं है जो की मनुष्य के रिश्ते को समझें। तकनीक की अपनी सीमा है। ए आइ के कारण डीप फेंक का खूब उपयोग किया जाएगा। अब तो हूबहू आवाज भी बन रही है। इस तकनीक के खतरे ज्यादा है। ऐसे में यह जरूरी है कि हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आंख मूंदकर भरोसा ना करें।
विषय की प्रस्तावना करते हुए डॉ. लखन रघुवंशी ने कहा कि हिंदी में शोध के क्षेत्र में समागम में एक नई नींव रखी है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का लाभ है और नुकसान भी है। चैट जीपीटी उतना ही बताता है जितना उसे इन पुट दिया गया है। इसका लाभ क्या है गलत खबर है तो उसकी जानकारी निकाल सकते हैं। इसमें रचनात्मकता की कमी है। इसका उपयोग करते हुए हमें कापी राइट से बचना है। इसके इंटेलिजेंस से दिक्कत है , यह इतना इंटेलिजेंट नहीं है। इस मशीन में मानव दिमाग की तरह क्षमता नहीं है।
इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने कहा कि यह एक ऐसा विषय है जिसे सीखना होगा। एआइ वरदान है लेकिन इसके साथ ही जरूरी है कि इसका उपयोग सोचकर करें। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से चाहे जितना काम किया जा सकता हो लेकिन खबर आपको ही पैदा करना होगी। उस खबर में वैल्यू एडिशन जोड़ने में हम मदद लें। लोगों का भरोसा मीडिया पर है इस भरोसे को कायम रखना भी मीडिया की ही जिम्मेदारी है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इस भरोसे को कभी हासिल नहीं कर सकता है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विशेषज्ञ राजकुमार जैन ने कहा कि बौद्धिकता कभी भी कृत्रिम नहीं हो सकती है। ऐसे में इसका भरोसा शुरुआत से ही संदिग्ध हो जाता है। हम एआइ की मदद आर्टिकल तैयार करने में ले सकते हैं। इसमें भी हमें यह ध्यान रखना होगा कि वह पुरानी जानकारी ही हमें देगा। ऐसे में हमें अपने काम के टूल्स का उपयोग करना चाहिए। यह चिंता मत कीजिए कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण नौकरी जाएगी। बल्कि मैं तो कहता हूं इस तकनीक के आने के बाद तकनीक को समझने वालों को नई नौकरी मिलेगी।
कार्यक्रम के प्रारंभ में समागम के संपादक मनोज कुमार ने कहा कि एक शोध पत्रिका का 23 वर्ष का सफर अपने आप में चुनौतीपूर्ण है। हम हमेशा नए और ज्वलंत मुद्दे को चर्चा के लिए लेकर आते हैं। इसी कड़ी में आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर चर्चा की जा रही है। इस चर्चा के साथ ही इस पर आधारित समागम का नया अंक भी लोकार्पित किया गया।
कार्यक्रम में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार अजय वर्मा ने कहा कि तकनीक उपयोग के लिए होती है। हमें तकनीक की कमी और अच्छाई को समझना होगा और उसी के हिसाब से काम करना होगा। इस कार्यक्रम में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ रेनू जैन विद्यार्थियों को तकनीक के इस दौर में अपनी क्षमता के निर्माण के लिए शुभकामनाएं दीं।