देश का निर्माण करते हैं बच्चे : श्री विश्वास सारंग
हम बच्चों का भविष्य उज्ज्वल देखना चाहते हैं – मार्गरेट ग्वाडा
बाल अधिकार हमारे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेंगे – प्रो. के.जी. सुरेश
चिकित्सा शिक्षा मंत्री श्री विश्वास सारंग ने किया ‘मांदल’ फोटो एग्जिबिशन का उद्घाटन
भोपाल, 19 नवम्बर, 2021: विश्व बाल दिवस (20 नवंबर) के प्रसंग पर शुक्रवार को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्रांगण में दो दिवसीय ‘मांदल’ फोटो प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। जिसका उद्घाटन मध्य प्रदेश शासन के चिकित्सा शिक्षा मंत्री श्री विश्वास सारंग ने किया। इस प्रदर्शनी में छह किशोरों द्वारा खींची हुई 60 तस्वीरें प्रदर्शित की गई हैं। इनमें झाबुआ के दो और धार के चार चाइल्ड फोटोग्राफर शामिल हैं। विश्व बाल दिवस को सेलिब्रेट करने के लिए इस गो ब्लू थीम पर नीले रंग के गुब्बारे भी सभी विशिष्ट अथितियों द्वारा आकाश में छोड़े गए। शाम को विश्वविद्यालय भवन पर नीली रोशनी की व्यवस्था की गई।
‘यूथ फॉर चिल्ड्रन’ के अंतर्गत यूनिसेफ, वसुधा विकास संस्थान एवं माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित प्रदर्शनी में ‘बाल अधिकार के साथ आदिवासी लोकदर्शन और मांडव’ थीम पर खींची गई तस्वीरों को विशेष रूप से सम्मिलित किया गया। इन तस्वीरों में सीमित संसाधनों के ग्रामीण परिवेश में बच्चों की मासूम मुस्कान और मानवीय भावनाएं तीव्रता से प्रकट होती हैं।
इस अवसर पर मंत्री श्री विश्वास सारंग ने अपने संबोधन में कहा कि बच्चे ही समाज के भविष्य का निर्धारण और देश का निर्माण करते हैं। इसलिए बच्चों को स्वस्थ वातावरण और आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने होंगे। भगवान श्रीकृष्ण ने बचपन से अपना लीडरशिप कौशल दिखाया था। छोटे बच्चे गीली मिट्टी के समान होते हैं। उन्हें आकार देना हमारा काम है।
इस अवसर पर यूनिसेफ मध्यप्रदेश की चीफ मार्गरेट ग्वाडा ने कहा कि यूनिसेफ की 75 वर्षगांठ पर हम बच्चों का भविष्य उज्ज्वल देखना चाहते हैं। तस्वीरें शब्दों से ज्यादा सशक्त अभिव्यक्ति का माध्यम है और बच्चों ने इस माध्यम का बेहतरीन इस्तेमाल किया है
माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने इस अवसर पर कहा कि बाल अधिकार हमारे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेंगे। इन विषयों को लेकर समाज में जागरूकता पैदा करना बहुत ज़रूरी है और विश्वविद्यालय इसमें अपनी भूमिका ज़रूर निभाएगा। कार्यक्रम में यूनिसेफ के कम्युनिकेशन स्पेशलिस्ट श्री अनिल गुलाटी, विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार श्री अविनाश बाजपेई जी एवं वसुधा विकास संस्थान से डॉ. गायत्री परिहार भी उपस्थित रहे।
प्रदर्शनी में फोटो शामिल होने पर बाल फोटोग्राफर ने यह कहा:
प्रदर्शनी में अपना फोटो लगाने वाली 16 साल की रिया सोनी झाबुआ के नौ गाँव से हैं और उन्होंने मांडव में पारम्परिक रूप से होने वाली खेती, पुराने किलों के मुंडेरों पे खेलते बच्चों आदि को अपने कैमरे में कैद किया है। रिया कहती हैं कि मांडव की सादगी भरी ज़िंदगी से ये सीखने को मिला कि कम में भी खुश रहा जा सकता है। वहीं, 16 साल की पूजा हटिला को भी तस्वीरें खींचने में बहुत मज़ा आया। वे कहती हैं कि हमारे गांव में पहले कोई भी लड़की तस्वीरें नहीं खींचती थी। लेकिन जब मुझे ये मौका मिला तो कैमरा चलाकर काफी अच्छा लगा। खिलखिलाते बचपन की तस्वीरें खींचकर मज़ा आया।
नालछा गांव में रहने वाले 17 वर्षीय ऋतिक यादव वैसे तो 11 कक्षा में कृषि की पढाई कर रहे हैं, लेकिन उनकी तस्वीरें देखकर लगता है कि जैसे उन्होंने प्रोफेशनल फोटोग्राफी सीखी हो। ऋतिक कहते हैं कि हम सुबह 12 बजे कैमरा लेकर निकले थे और शाम 6 बजे तक घूम-घूमकर ये तस्वीरें खींचते रहे। पता ही नहीं था यहां कौनसी तस्वीरें लगेंगी। यहां अपनी तस्वीरें देखकर अच्छा लग रहा है।
मांडव के ही रहने वाले 17 साल के हर्ष यादव कहते हैं कि हम जहां तस्वीरें खींचने गए थे, वहां के बच्चों के पास खिलौने नहीं हैं, तो वे टायर से खेल रहे थे। मैंने उनकी तस्वीरें लीं। गांव में काम कर रही महिलाओं को ग्रुप सेल्फी लेना सिखाया और उनकी सेल्फी लेते हुए तस्वीरें खींची। और जब हमारी वालंटियर दीदी बच्चों को कैमरा चलाना सीखा रही थीं, तो मैंने दोस्त के मोबाइल से उनकी तस्वीर ली। देखकर अच्छा लग रहा है कि वो तस्वीर भी यहां प्रदर्शनी में लगी है।