नई पीढ़ी में हस्तांतरित होने चाहिए गुरु-शिष्य परंपरा के संस्कार : भरत शरण
भारत को विश्वगुरु बनाएगी राष्ट्रीय शिक्षा नीति : प्रो. केजी सुरेश
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में व्यास पूजा एवं गुरु सम्मान कार्यक्रम का आयोजन
भोपाल, 05 अगस्त, 2021: गुरु और शिष्य परंपरा के संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाएं, यह बहुत जरूरी है। नयी पीढ़ी को अपनी संस्कृति से परिचित कराना हम सबका दायित्व है। व्यास पूजा और गुरु सम्मान जैसे परंपरागत एवं सांस्कृतिक उत्सव समाज को जोड़कर रखते हैं और समाज को दिशा प्रदान करते हैं। यह विचार मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग के अध्यक्ष श्री भरत शरण ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में आयोजित ‘व्यास पूजा एवं गुरु सम्मान’ कार्यक्रम में व्यक्त किये। वहीं, कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह शिक्षा नीति भारत को पुनः विश्वगुरु बनाएगी। शिक्षा नीति को सफल बनाने का सारा दारोमदार शिक्षकों के जिम्मे है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री भरत शरण ने कहा कि हमारे देश में ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता था। इस ज्ञान मार्ग के कारण ही भारत को विश्वगुरु का दर्जा प्राप्त था। भारत में गुरु की महत्त बताने के लिए श्री शरण ने गुरु और शिष्य के कई उदाहरण बताये। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि इस देश में गुरुकुल की परंपरा रही है। उन्होंने कहा कि गुरु वह होता है जो जीवन को तैयार करता है और टीचर आपको एग्जाम के लिए तैयार करता है। गुरु आपके सम्पूर्ण जीवन को संवारने का काम करता है। उन्होंने कहा कि हमें उपभोक्तावादी सोच से बाहर आना चाहिए। शिक्षा समाज पोषित होनी चाहिए। प्रो. सुरेश ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति गुरु और शिष्य की परंपरा को केंद्र में रखकर तैयार की गई है जो देश को विश्वगुरु का दर्जा दिलाएगी।
गुरु सम्मान के कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्षों और अध्यापकों को सम्मानित किया गया। इससे पूर्व वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक डॉ. मणिकंठन नायर ने रिसर्च फॉर रिसर्जेन्स फाउंडेशन (आरऍफ़आरऍफ़) का परिचय दिया और आरऍफ़आरऍफ़ के अंतर्गत विश्वविद्यालय में किये गए कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन प्रोड्यूसर दीपक चौकसे ने और आभार ज्ञापन कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेयी ने किया। इस अवसर पर भारतीय शिक्षण मंडल के तुलसीदास, मिथिलेश कुमार, विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं अधिकारीगण उपस्थित रहे।