स्वस्थ पत्रकारिता चाहिए, तो पत्रकारों की चिंता करे समाज : अतुल तारे
भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता के पाठ्यक्रम होंगे शुरू : प्रो. केजी सुरेश
कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत स्थापित होगा ‘भाषायी पत्रकारिता विभाग’
भोपाल, 31 मई, 2021: वरिष्ठ पत्रकार श्री अतुल तारे ने कहा कि पत्रकार इसी समाज का अंग हैं। पत्रकार कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं। समाज को उनके प्रति संवेदनशील होना चाहिए। यदि समाज को स्वस्थ पत्रकारिता चाहिए, तब उन्हें पत्रकारों की सुरक्षा और आर्थिक विषयों से लेकर अन्य सब प्रकार के बुनियादी प्रश्नों पर विचार करना चाहिए। श्री तारे ‘हिन्दी पत्रकारिता : अवसर एवं चुनौतियां’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। हिन्दी पत्रकारिता दिवस के उपलक्ष्य में 31 मई को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि विश्वविद्यालय के नये परिसर में हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय भाषाओं को संरक्षण देने हेतु ‘भाषायी पत्रकारिता विभाग’ की स्थापना करेंगे। इस विभाग में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के साथ दक्षिण भारत की एक भाषा में भी पत्रकारिता का अध्ययन कराया जाएगा।
वरिष्ठ पत्रकार श्री अतुल तारे ने कहा कि हिन्दी पत्रकारिता को कहीं से चुनौती है, तो वह हमारे अपने भीतर से ही है। हमें हिन्दी पत्रकारिता को बचाना है, तब हिन्दी को बढ़ावा देना ही होगा। हम देखते हैं कि वर्तमान में हिन्दी के राष्ट्रीय समाचारपत्रों में अंग्रेजी शब्दों का अनावश्यक उपयोग बढ़ गया है। यह रुकना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजसत्ता आज भी जिस भाषा की पत्रकारिता को मान्यता देती है, वह अंग्रेजी है। जबकि हिन्दी पत्रकारिता का प्रसारण अधिक है। हिन्दी पत्रकारिता के पाठक भी अधिक हैं और हिन्दी में निकलने वाले समाचारपत्र भी सबसे अधिक हैं। इसके बाद भी हिन्दी पत्रकारिता की अपेक्षा अंग्रेजी पत्रकारिता को वरियता दी जाती है। उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा की पत्रकारिता का विरोध नहीं है। सभी भाषाओं की पत्रकारिता के प्रति समान दृष्टि होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता में कुछ एक्टिविस्ट आ गए हैं, जिसके कारण पत्रकारिता अपनी दिशा भटक रही है।
श्री तारे ने कहा कि हमें यह विचार करना चाहिए कि आखिर हिन्दी पत्रकारिता की नींव रखने वाले पं. जुगुल किशोर शुक्ल की स्मृति में कोई स्मारक देश में क्यों नहीं है? उन्होंने यह भी प्रश्न किया कि इतने वर्षों से हमारा ध्यान इस ओर क्यों नहीं गया?
कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि हम नये परिसर में पंडित जुगल किशोर शुक्ल की स्मृति में एक भवन का नामकरण कर उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि हमें नयी भाषाएं सीखनी चाहिए लेकिन हमें कभी भी अपनी भाषा के प्रति हीनभावना नहीं रखनी चाहिए। किसी भी विदेशी भाषा के प्रति लगाव रखने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन हमारी अपनी भाषा सर्वोपरि रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में मातृभाषा के महत्व को रेखांकित किया गया है। उसे बढ़ावा दिया गया है। हम अपने विश्वविद्यालय में भाषायी पत्रकारिता को बढ़ावा देने के लिए नवाचार करेंगे। इस कड़ी में विश्वविद्यालय में भाषायी पत्रकारिता विभाग की स्थापना भी की जाएगी। कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने बांग्लादेश के आंदोलन का उदाहरण देकर मातृभाषा की महत्ता को बताया। उन्होंने कहा कि 1971 में जब बांग्लादेश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, तब मात्र एक नये देश के सृजन नहीं हुआ था बल्कि यह घटना मातृभाषा के महत्व को बताती है।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका ‘मीडिया मीमांसा’ के नये अंक का विमोचन किया गया। यह शोध पत्रिका त्रैमासिक है, जो संचार एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में हो रहे शोधकार्यों को समाज तक ले जाने का माध्यम है। कुलपति प्रो. सुरेश ने कहा कि मीडिया मीमांसा के माध्यम से शोध संस्कृति को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाएगा। कार्यक्रम का संचालन पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष डॉ. राखी तिवारी ने किया और आभार प्रदर्शन कुलसचिव प्रो. पवित्र श्रीवास्तव ने किया।