माखनलाल जी ने 30 करोड़ भारतवासियों को जगाने का काम किया – प्रो. नंद किशोर पांडे
मातृभाषा और संस्कृति मजहब से ज्यादा महत्वपूर्ण है – प्रो. के.जी. सुरेश
पत्रकारिता विश्वविद्यालय में ‘पुष्प की अभिलाषा : साहित्य में राष्ट्रीयता’ पर व्याख्यान
महान स्वतंत्रसेनानी एवं प्रखर संपादक माखनलाल चतुर्वेदी के जयंती प्रसंग पर पत्रकारिता विश्वविद्यालय का वार्षिक राष्ट्रीय आयोजन
भोपाल, 07 अप्रैल, 2021: देश में राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाली कालजयी काव्य रचना ‘पुष्प की अभिलाषा’ के रचियता साहित्यकार, पत्रकार और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती के पर बुधवार को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित वार्षिक राष्ट्रीय व्याख्यान में ‘पुष्प की अभिलाषा: साहित्य में राष्ट्रीयता’ विषय पर विद्वानों ने अपने विचार रखे।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में राजस्थान विश्वविद्यालय में कला संकाय के अधिष्ठाता एवं निदेशक (शोध) प्रो. नंद किशोर पांडे ने माखनलाल जी के व्यक्तिगत जीवन के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय आत्मा के उपनाम से चर्चित माखनलाल जी का लेखन 30 करोड़ भारतवासियों को जगाने के लिए समर्पित था। उन्होने काव्य रचना के साथ ही अपनी पत्रकारीय प्रतिभा के माध्यम से अंग्रेज सत्ता के खिलाफ सक्रीय काम किया। वे अपने पत्रकारिता, लेखन के साथ ही महात्मा गांधी से प्रभावित होकर उनके आंदोलन से जुड़े और 1930 तक की उनकी रचनाओं में वे एक आंदोलनकारी, स्वतंत्रता सेनानी और साम्राज्यवादी ताकतों से मुक्ति की बात करते दिखाई देते हैं। बिलासपुर जेल में लिखी गई पुष्प की अभिलाषा कविता ने आम आदमी को देश प्रेम और राष्ट्रहित में सोचने को मजबूर किया। प्रो. पांडे ने दादा की कई कविताओं का वाचन करते हुए उनमें राष्ट्रयता के बोध को समझाया।
मुख्य अतिथि के रूप में बाबा साहेब अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ के कुलाधिपति डॉ. प्रकाश बरतुनिया वर्तुनिया ने माखनलाल जी की पत्रकारिता की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे निर्भीक और तटस्थ पत्रकार थे। उनकी पत्रकारिता राष्ट्रीय जन जागरण और सांस्कृतिक उत्थान पर केंद्रित थी। श्री वर्तुनिया ने कहा कि पुष्प की अभिलाषा के माध्यम से लोगों में देश प्रेम के भाव का संचार किया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में सीआईएसएफ भेल के वरिष्ठ कमांडेंट और साहित्यकार श्री वर्तुल सिंह ने अपने व्याख्यान में कहा कि केवल इतिहास के शौर्य की चर्चा करना ही राष्ट्रवाद नहीं है, अपनी नदियां, पहाड़ और पर्यावरण की चिंता और रक्षा करना भी राष्ट्रवाद है। श्री सिंह ने कहा कि देश में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक सभी स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य में राष्ट्रवाद पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, जिसे अलग अलग रूप में निरूपित किया गया।
कार्यक्रम के अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश ने कहा कि मातृभाषा और संस्कृति मजहब से ज्यादा महत्वपूर्ण है। बांग्लादेश में मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। बलूचिस्तान, पख्तून, सिंध में अलगाव का भाव बताता है कि मनुष्य अपनी संस्कृति से ज्यादा देर तक विमुख नहीं रह सकता है। प्रो. सुरेश ने कहा कि साहित्य समाज को प्रतिबिंबित करता है, राष्ट्रीयता की परिभाषा को बांधा नहीं जा सकता है, यह व्यापक है। हम दादा की कविता पुष्प की अभिलाषा कविता का शताब्दी वर्ष माना रहे है, इसी वर्ष हम भारतीय स्वतंत्रता की हीरक जयंती मना भी रहे हैं, यह सौभाग्यजनक संयोग है। हम दादा की पत्रकारिता के मूल्यों और उनके व्यक्तिगत मूल्यों को समाज में पहुंचाएं यही हमारा उद्देश्य है।
कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश ने घोषणा कि माखनलाल जी की जन्मस्थली बाबई में प्रोत्साहन के लिए प्रतिवर्ष एक छात्र को छात्रवृत्ति दी जाएगी। भोपाल में नए परिसर से प्रारंभ होने वाले विश्वविद्यालय के कम्युनिटी रेडियो का नाम माखनलाल जी के समाचार पत्र कर्मवीर के नाम पर होगा। इसके साथ ही प्रो. सुरेश ने विश्वविद्यालय के कोरोना से ग्रस्त स्टाफ को सहायता के ले एक कोविड रिस्पॉन्स टीम के गठन की भी घोषणा की।
कार्यक्रम का संचालन सहायक कुलचिव श्री विवेक सावरीकर ने किया, स्वागत भाषण डॉ. रामदीन त्यागी ने दिया और आभार विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेयी ने व्यक्त किया।