प्रेमचंद के साहित्य में गहरी मानवीय संवेदनाएं : डॉ. साधना बलवटे
प्रेमचंद साहित्य परिषद, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा प्रेमचंद जयंती प्रसंग पर विशेष व्याख्यान का आयोजन
भोपाल, 31 जुलाई, 2020: कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने अपने लेखन में समाज के यथार्थ को लिखा है और यही एक साहित्यकार की जिम्मेदारी भी है। लेकिन समाज के यथार्थ को लिखते हुए प्रेमचंद ने कभी राष्ट्रीय अस्मिता का अनादर नहीं किया। उनके लेखन में कहीं भारतीय संस्कृति का माखौल दिखाई नहीं देता। उन्होंने दलितों और शोषितों की आवाज उठाई लेकिन कभी भी ऐसा कुछ नहीं लिखा जिससे वर्ग संघर्ष पैदा हो। प्रेमचंद के लेखन का यह गुण युवाओं को जरूर सीखना चाहिए। ये बातें प्रख्यात साहित्यकार-समीक्षक डॉ. साधना बलवटे ने माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कहीं।
विश्वविद्यालय की प्रेमचंद साहित्य परिषद की ओर से कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के जयंती प्रसंग पर आयोजित व्याख्यान में डॉ. बलवटे ने ‘वर्तमान साहित्य : दशा और दिशा’ विषय पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलसचिव प्रो. (डॉ.) अविनाश वाजपेयी ने की। डॉ. बलवटे ने कहा कि प्रेमचंद कभी अपने लेखन में एक भारतीय के खिलाफ दूसरे भारतीय को खड़ा नहीं करते लेकिन उनके लेखन की गलत व्याख्या कर कई लोग आज अपना हित साधना चाहते हैं। प्रेमचंद के लेखन में मानवीय संवेदनाओं और संस्कृति का विशेष स्थान है।
लिखने से पहले समझें युवा:
डॉ. साधना बलवटे ने कहा कि साहित्य समाज को दिशा देता है लेकिन सोशल मीडिया के इस युग में आज लेखन के साथ चिंतन बहुत कम हो गया है। युवा अपनी कविता, कहानी लिखकर फेसबुक पर साझा कर देते हैं और उस पर आने वाले कमेंट को ही सफलता मान लेते हैं। वह यह विचार नहीं करते कि उनके इस लेखन का समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा या वो अपने लेखन में कैसे विचारों को बढ़ावा दे रहे हैं? उन्होंने युवाओं से यह आग्रह किया कि लिखने से पहले पढ़ने की आदत डालें। कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. (डॉ.) अविनाश वाजपेयी ने धन्यवाद् ज्ञापन किया।