परिवर्तन लाने वाले संचारक थे गांधीजी
गांधीजी ने किया अंतिम व्यक्ति तक संवाद
‘कुलपति संवाद’ व्याख्यानमाला में ‘संचारक के रूप में गांधीजी’ विषय पर प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने रखे विचार, 11 जून को शाम 4:00 बजे ‘साहित्य और पत्रकारिता’ विषय पर प्रो. सुरेन्द्र दुबे का व्याख्यान
भोपाल, 10 जून 2020: माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित ‘कुलपति संवाद’ ऑनलाइन व्याख्यानमाला में प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि संपूर्ण दुनिया में परिदृश्य परिवर्तन और विचार परिवर्तन के लिए अपने प्रत्येक विचार, सिद्धांत, व्यवहार को किसी जन समूह के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने वाले और उसके अनुरूप व्यक्ति को क्रिया करने के लिए उत्प्रेरित करने की क्षमता रखने वाले संचारक के रूप में महात्मा गांधी को समझना चाहिए। आधुनिक सभ्यता दृष्टि से उपजी हुई मीडिया/पत्रकारिता को गांधीजी मनुष्य के लिए परिवर्तन का सबसे सबल माध्यम मानते हैं और उसका व्यवहार भी करते हैं।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने ‘संचारक के रूप में गांधी’ विषय पर अपने व्याख्यान में कहा कि एक संचारक के रूप में यदि गांधीजी को समझना है तो भारतीयता को समझना होगा। गांधीजी को आधुनिक संचार के सिद्धांतों और शास्त्रों में खोज पाना मुश्किल है। गांधीजी को जानना है तो भारतीय आत्मा, संस्कृति और संवाद को समझना होगा। आज की व्यावसायिक पत्रकारिता में भी महात्मा गांधी को ढूंढ़ पाना कठिन है। उन्होंने कहा कि पिछले दस वर्षों में संचार तकनीक के क्षेत्र में बड़ा बदलाव आया है। जनसंचार के माध्यमों में दृष्टि, भाषा और संस्कृति सबको लेकर एक परिवर्तन हुआ है।
उन्होंने कहा कि गांधीजी एक तरफ समाचारपत्र को लोक जागरण और लोकशिक्षण का सबलतम साधन स्वीकार करते हैं, वहीं दूसरी ओर यूरोपीय पत्रकारिता और यूरोपीय दृष्टि से भारत में हो रही पत्रकारिता के आलोचक भी हैं। प्रो. शुक्ल ने कहा कि महात्मा गांधी का पठन-पाठन पूरा अंग्रेजी भाषा में हुआ था लेकिन जब उन्होंने समाचारपत्र प्रकाशित किए तो सामान्य जन से संवाद करने के लिए भारतीय भाषाओं का भी चुनाव किया। गांधीजी एक सफल संचारक थे जिनमें भारतीय विद्वानों का समावेश एवं बल था, जैसे कृष्ण, शंकर, बुद्ध, रामानुज, समर्थ रामदास, छत्रपति शिवाजी, विवेकानंद आदि। उन्होंने बताया कि गांधीजी जहाँ एक ओर अपने समाचारपत्र में पूरी दुनिया में समानता और सद्भावना लाने के लिए लेख लिखते तो वहीं दूसरी ओर अरण्डी के तेल पर फीचर भी प्रस्तुत करते हैं। इससे समझ आता है कि गांधीजी एक ही समय मे कई मोर्चों पर डटे हुए थे। प्रो. शुक्ल ने बताया कि गांधीजी की सम्प्रेषण कला उनके जीवन के निश्चय से निकलती है जो उनके जीवन काल में विभिन्न दौर में आई।
आज ‘साहित्य और पत्रकारिता’ विषय पर व्याख्यान :
‘कुलपति संवाद’ ऑनलाइन व्याख्यानमाला के अंतर्गत 11 जून, गुरुवार को शाम 4:00 बजे ‘साहित्य और पत्रकारिता’ विषय पर सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु (उत्तरप्रदेश) के कुलपति प्रो. सुरेन्द्र दुबे व्याख्यान देंगे। उनका व्याख्यान एमसीयू के फेसबुक पेज पर लाइव रहेगा।
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