इलेक्ट्रॉनिक नहीं, सांस्कृतिक माध्यम है रेडियो : डॉ. महावीर सिंह
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में मनाया गया राष्ट्रीय प्रसारण दिवस
भोपाल, 23 जुलाई, 2019: रेडियो मात्र इलेक्ट्रॉनिक माध्यम नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक माध्यम है। यह भारत की संस्कृति को संभालकर चलता है। दूरदर्शन, फिल्म और निजी चैनल जैसे अन्य माध्यमों को लेकर यह प्रश्न उठा कि यह संस्कृति को बिगाड़ देंगे, लेकिन यह प्रश्न रेडियो को लेकर कभी नहीं उठा। यह विचार आकाशवाणी के भोपाल केंद्र के पूर्व निदेशक डॉ. महावीर सिंह ने 23 जुलाई को राष्ट्रीय प्रसारण दिवस पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए।
डॉ. महावीर सिंह ने कहा कि भारतीय परिवारों में रेडियो की उपस्थिति एक सदस्य के रूप में है। रेडियो के प्रति हमारा आत्मीय लगाव रहता है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय एकता को स्थापित करने और विकास कार्यक्रम को जन-जन तक पहुँचाने में रेडियो की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। कंटेंट और माध्यम पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि माध्यम कभी भी कंटेंट से बड़ा नहीं हो सकता। माध्यम केवल कहने वाले और सुनने वाले को सुविधा देता है, प्रमुख तो कंटेंट ही होता है। रेडियो की पहुँच को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि जहाँ न पहुँचे प्राणी, वहाँ पहुँचे आकाशवाणी। रेडियो की ताकत उसकी पहुँच है। शिक्षित और अनपढ़ दोनों रेडियो का उपयोग कर सकते हैं।
आकाशवाणी के भोपाल केंद्र के उप निदेशक श्री धर्मेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि कोई भी माध्यम कमजोर नहीं होता, यदि हम कंटेंट की विश्वसनीयता बनाए रखें। आकाशवाणी की विशेषता यही है कि इससे प्रसारित जानकारी विश्वसनीय होती है। आकाशवाणी निष्पक्ष रूप से जनसामान्य तक सूचना पहुँचाता है। उन्होंने बताया कि साउंड ब्राडकास्टिंग के लिए रेडियो को सबसे अच्छा माध्यम माना जाता है। उन्होंने कहा कि 14 अगस्त, 1947 की रात को भारत की स्वतंत्रता पर प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जो ऐतिहासिक भाषण दिया था, वह आज भी आकाशवाणी के अर्काइव्स में सुरक्षित है। आकाशवाणी अनेक ऐतिहासिक अवसरों का साक्षी रहा है। श्री श्रीवास्तव ने बताया कि स्वतंत्रता के समय भारत के 2.5 प्रतिशत भूभाग तक आकाशवाणी की पहुँच थी, जो आज बढ़कर 92 प्रतिशत से अधिक हो गई है। उन्होंने बताया कि वैसे तो भारत में 1923 से ही रेडियो प्रसारण की शुरुआत हो गई थी, लेकिन यह क्लब स्तर पर थी। संस्थागत रूप से 23 जुलाई, 1927 से रेडियो प्रसारण प्रारंभ हुआ।
विश्वविद्यालय के कुलपति श्री दीपक तिवारी ने कहा कि रेडियो एक पैसिव मीडियम है, जिसको सुनते हुए आप दूसरे अन्य कार्य भी कर सकते हैं। आकाशवाणी के कार्यक्रमों की विविधता उसे विशेष बनाती है। उन्होंने बताया कि यदि आप रेडियो सुनेंगे तो स्क्रिप्ट लिखने की कला स्वत: आ जाएगी। कुलपति श्री तिवारी ने रेडियो की सिग्नेचर ट्यून के बारे में बताया कि जर्मन मूल के वाल्टर कॉफमैन ने शिवरंजनी राग पर बनाई थी। भारतीय संगीत में उनकी गहरी रुचि थी। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में भी रेडियो की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यदि मीडिया के विद्यार्थी रेडियो में अपना करियर बनाना चाहते हैं, तो उन्हें रेडियो के कार्यक्रम सुनने की आदत डालनी चाहिए। इस अवसर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग के प्रोड्यूसर श्री दीपक चौकसे ने ‘भारतीय रेडियो प्रसारण का इतिहास’ पर प्रस्तुतीकरण दिया। आभार प्रदर्शन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष डॉ. संजीव गुप्ता ने और कार्यक्रम का संचालन सहायक प्राध्यापक श्री अरुण खोबरे ने किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।