कविता श्रृंगार रस से नहीं, राष्ट्रीयता की सर्वोच्चता के उद्घोष से अमर होती है : श्रीधर पराड़कर
‘पुष्प की अभिलाषा’ के मूल्य और इसके शाश्वत संदेश ने शताब्दी वर्ष के लिए अभिप्रेत किया : प्रो. केजी सुरेश
पत्रकारिता में अपने अंदर के जीवित पुष्प की अभिलाषा का प्रकटीकरण आवश्यक : डॉ. विकास दवे
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में ‘पुष्प की अभिलाषा’ के शताब्दी वर्ष का शुभारंभ, वर्षभर होंगे साहित्यिक आयोजन
भोपाल, 16 फरवरी, 2021: अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संगठन मंत्री श्री श्रीधर पराड़कर ने कहा कि ‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता इसलिए कालजयी है क्योंकि वह श्रृंगार रस की कविता नहीं अपितु राष्ट्रीयता को सर्वस्व समर्पण करने के भाव वाली अद्भुत और प्रेरक कविता है। बसंत पंचमी के अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से प्रखर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कवि, साहित्यकार पं. माखनलाल चतुर्वेदी की कालजयी काव्य रचना ‘पुष्प की अभिलाषा’ के शताब्दी वर्ष का शुभारंभ किया गया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि विश्वविद्यालय इस प्रसंग को लेकर दादा माखनलाल चतुर्वेदी की कर्मस्थली से जन्मस्थली तक वर्षभर साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन करेगे।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री पराड़कर ने कहा कि ‘पुष्प की अभिलाषा’ स्वांत सुखाय की प्रचलित धारणा को तोड़ती है, जिसका मतलब स्वयं के आनंद के लिए लिखने रहा है। परन्तु स्वांत सुखाय का सही अर्थ यह है कि हमारे लेखन में ‘स्व का अंत’ होना चाहिए अर्थात लेखन अपके स्वयं के विचार, मत और धारणाओं से मुक्त हो। ऐसे ही लेखन की आवश्यकता आज भी समाज को है। उन्होंने कहा कि किसी भी विधा में उत्कृष्ट रचना के लिए वेदना, संवेदना और समर्पण की आवश्यकता रहती है। पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने देश और समाज के लिए सर्वस्व समर्पित कर दिया था।
‘पुष्प की अभिलाषा’ के शताब्दी वर्ष के शुभारंभ कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि आमतौर पर व्यक्तियों और संस्थाओं का शताब्दी वर्ष मनाया जाता है, परन्तु संभवतः यह देश में पहली बार है, जब किसी कविता का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। यह माखनलाल जी इस कविता के उस मूल्य और उसमे समाहित शाश्वत संदेश की वजह से है, जो राष्ट्र को सर्वोच्च स्थान देता। पुष्प की अभिलाषा कविता का यह शताब्दी वर्ष पंडित माखनलाल जी के विचारों और उनकी पत्रकारिता के स्मरण, प्रसार और अनुसरण का एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिसे हम सार्थक करेंगे। उन्होंने कुलभूषण जाधव के प्रकरण में हुई रिपोर्टिंग का उल्लेख करते हुए कहा कि निष्पक्षता और तटस्थता, राष्ट्रीयता से बढ़कर नहीं होनी चाहिए।
मुख्य अतिथि एवं मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि हम सबको अपने अंदर के उस जीवित पुष्प की अभिलाषा को पहचानना जरूरी है, जो व्यक्ति हित के स्थान पर राष्ट्र हित की बात करता है। पत्रकारिता में इसी पुष्प की अभिलाषा का प्रकटीकरण सच्ची पत्रकारिता होगा। आज के दौर में राष्ट्र सर्वोपरि का मंत्र ही माखनलालजी की पत्रकारिता का सम्मान होगा। कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में अनुसूचित जाति कल्याण विभाग की सचिव सुश्री रेणु तिवारी ने अपने उद्बोधन में माखनलाल जी के परिवार में आचार-विचार संस्कृति और अनुकरणीय परंपराओं से जुड़े प्रसंग साझा किए। उन्होंने कहा कि पुष्प की अभिलाषा कविता को माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में पढ़ाया जाना आवश्यक है।
इस कार्यक्रम में जन्मस्थली बाबई से पधारे कलाकारों हिमांशु सिंह ‘हार्दिक’ और करण सिंह ने ‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता की संगीतमयी प्रस्तुति दी। विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने इसी कविता पर केंद्रित एक लघु नाटिका का मंचन किया। बसंत पंचमी के अवसर पर विश्वविद्यालय में पुस्तकालय विभाग की ओर से सरस्वती पूजा का भी आयोजन किया गया। इस अवसर पर दादा माखनलाल चतुर्वेदी के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर केन्द्रित आलेख, भाषण एवं काव्य पाठ प्रतियोगिताएं के पुरस्कारों का भी वितरण किया गया। कार्यक्रम का समन्वयन एवं संचालन सहायक प्राध्यापक लोकेंद्र सिंह ने किया। सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का संचालन सहायक कुलसचिव विवेक सावरीकर, प्रतियोगिताओं का समन्वयन सहायक प्राध्यापक डॉ. अरुण खोबरे ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेयी ने किया।