‘पेंडमिक’ से ज्यादा खतरनाक ‘इंफोडमिक’: प्रो. केजी सुरेश
सर्वे भवंतु सुखिन: होना चाहिए पत्रकारिता का उद्देश्य: डॉ. परमार
स्वास्थ्य विभाग और जनता के बीच में सेतु है पत्रकार: डॉ. सिंह
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय और यूनिसेफ द्वारा ‘जनस्वास्थ्य एवं तथ्यपरक पत्रकारिता – नवजात की देखभाल’ विषय पर मीडिया कार्यशाला का आयोजन
भोपाल, 09 फरवरी, 2021: कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय रायपुर के पूर्व कुलपति डॉ. मानसिंह परमार ने कहा कि पत्रकारिता का उद्देश्य सर्वे भवंतु सुखिन: होना चाहिए। पत्रकारिता जागरूकता पैदा करें, तभी ‘सबके सुख की कल्पना’ साकार हो पाएगी। पत्रकारिता में लोक कल्याण की भावना होना आवश्यक है।
डॉ. परमार आज माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालया और यूनिसेफ द्वारा ‘जनस्वास्थ्य एवं तथ्यपरक पत्रकारिता – नवजात की देखभाल’ विषय पर मीडियाकर्मियों की कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रुप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के कारण फेक कंटेंट की बाढ़ आ गई है। आज मीडिया में विश्वसनीयता की कमी है। विज्ञान और स्वास्थ्य से जुड़ी पत्रकारिता पर प्रशिक्षण होना चाहिए। उन्होंने मीडिया की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत के मीडिया ने कोरोना काल में अपनी जिम्मेदारी का बहुत अच्छे से निर्वाह किया और गलत सूचनाओं को फैलने से रोका।
कार्यशाला के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार श्री गिरीश उपाध्याय ने तथ्यपूर्ण पत्रकारिता पर जोर देते हुए कहा कि स्वास्थ्य विभाग को आगे आकर विभिन्न योजनाओं की जानकारी मीडिया से शेयर करना चाहिए क्योंकि जब आप सच्चाई, तथ्य और जानकारी पत्रकारों को देंगे तो वह निश्चित रूप से समाचार पत्रों के माध्यमों से जनता तक पहुंचेगी। उन्होंने कहा कि इस तरह की कार्यशाला संवाद को बढ़ाने में कारगर होती है।
कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि विश्वविद्यालयों का एक सामाजिक सरोकार भी है। पत्रकारिता में आज विषयों को समझने और गहन अध्ययन की आवश्यकता है। स्वास्थ रिपोर्टिंग एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें हम गलत, भ्रामक सूचनाओं को जगह नहीं दे सकते, क्योंकि उनसे आम नागरिकों का जीवन जुड़ा हुआ है। पत्रकार को हमेशा ‘एविडेंस बेस्ड रिपोर्टिंग’ ही करना चाहिए। दर्शकों को सही सूचना मिले, वे गुमराह न हो, यह पत्रकारिता की प्राथमिक जिम्मेदारी है। आज ‘पेंडमिक’ से ज्यादा खतरनाक ‘इंफोडमिक’ है, जिसमें सही सूचना की पहचान करना मुश्किल हो गया है। प्रो. सुरेश ने कहा कि पत्रकार जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे हैं। उन्हें सभी योजनाओं की बेहतर जानकारी होती है और वे जनता से भी निरंतर संवाद रखते हैं। इसलिए उनके फीडबैक का महत्व होता है। संचार का एक कंपोनेंट फीडबैक भी है। विश्वविद्यालय शीघ्र ही जिला स्तर पर इस तरह के प्रशिक्षण आयोजित करेगा। विश्वविद्यालय के विशनखेड़ी परिसर में प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया जाएगा।
स्वास्थ्य विभाग के उप संचालक (शिशु स्वास्थ्य) डॉ मनीष सिंह ने शिशु मृत्यु दर में आ रही कमी और राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों का ब्यौरा दिया। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य विभाग द्वारा शिशु मृत्यु दर को रोकने के लिए आधारभूत संरचनाओं के विकास के साथ जागरूकता बढ़ाने का काम भी किया जा रहा हैं। पत्रकार, स्वास्थ्य विभाग और जनता के बीच में एक सेतु का काम करते हैं। पत्रकारों के द्वारा पूछे जाने वाला सवाल जनता का ही सवाल होता है। इसलिए विभाग का भी दायित्व बनता है कि आप तक सही जानकारी समय पर पहुंच सके। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में पिछले वर्षों के दौरान शिशु मृत्यु दर में तेजी से कमी आई है। कोरोना वायरस बाद स्वास्थ सुविधाओं में वृद्धि हुई है। उन्होंने जनता और स्वास्थ्य विभाग के बीच संवाद को और मजबूत करने पर बल दिया। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि शिशु मृत्यु दर में 81 प्रतिशत प्रकरण समय पर निर्णय न करने के कारण होते हैं।
यूनिसेफ मध्यप्रदेश के संचार विशेषज्ञ श्री अनिल गुलाटी ने कहा कि यह कार्यशाला एक शुरुआत है। आगे भी इस तरह की कार्यशाला आयोजित की जाएगी ताकि पत्रकारों को स्वास्थ रिपोर्टिंग को लेकर अधिक जागरूक बनाया जा सके। यूनिसेफ की स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ वंदना भाटिया ने भी कार्यशाला को संबोधित किया। अंत में प्रतिभागी पत्रकारों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए। कार्यशाला के समन्वयक वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक श्री लाल बहादुर ओझा ने कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। कार्यशाला में प्रश्नोत्तर भी हुए। कार्यक्रम का संचालन सहायक प्राध्यापक डॉ अरुण खोबरे ने किया। आभार प्रदर्शन कुलसचिव डॉ अविनाश बाजपेयी ने किया।